| गुणस्थानों में एक जीव के एक काल में संभव भाव |
| गुणस्थान |
मूल भाव |
स्थान-संख्या |
पर-संयोग |
स्व-संयोग |
| प्रत्येक |
द्विसंयोगी |
त्रिसंयोगी |
चतु:संयोगी |
पंच-संयोगी |
| 1 से 3 |
3 (औद./क्षायो./पा.) |
10 |
3 |
3 |
1 |
|
|
3 |
| 4 से 7 |
5 (औद./क्षायो./पा./औप./क्षायि.) |
26 |
5 |
*9 |
*7 |
*2 |
|
#3 |
| *यहाँ औपशमिक-क्षायिक का संयोग भंग संभव नहीं है |
| #औपशमिक सम्यक्त्व और चारित्र का भंग संभव नहीं; इसी प्रकार क्षायिक में भी स्व-संयोगी भंग यहाँ संभव नहीं |
| उपशम-श्रेणी |
5 (औद./क्षायो./पा./औप./क्षायि.) |
35 |
5 |
10 |
10 |
5 |
1 |
*4 |
| *क्षायिक-सम्यक्त्व के साथ क्षायिक चारित्र का स्व-संयोगी भंग यहाँ संभव नहीं |
| क्षपक-श्रेणी |
4 (औद./क्षायो./पा./क्षायि.) |
19 |
4 |
6 |
4 |
1 |
|
4 |
| 13, 14 |
3 (औद./पा./क्षायि.) |
10 |
3 |
3 |
1 |
|
|
3 |
| सिद्ध |
2 (पा./क्षायि.) |
5 |
2 |
1 |
|
|
|
2 |
| गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 820-822 |