| गति |
नरक |
सामान्य |
दस हजार वर्ष |
33 सागर |
| 1 नरक |
दस हजार वर्ष |
एक सागर |
| 2 नरक |
साधिक एक सागर |
3 सागर |
| 3 नरक |
साधिक तीन सागर |
7 सागर |
| 4 नरक |
साधिक सात सागर |
10 सागर |
| 5 नरक |
साधिक दस सागर |
17 सागर |
| 6 नरक |
साधिक सत्रह सागर |
22 सागर |
| 7 नरक |
साधिक बाईस सागर |
33 सागर |
| तिर्यंच |
सामान्य |
क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण |
अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) |
| पंचेन्द्रिय |
खुद्दाभवगहण |
*पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| पंचेन्द्रिय पर्याप्त |
अन्तर्मुहूर्त |
पृथक्त्व (47) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| पंचेन्द्रिय योनिनी |
अंतर्मुहूर्त |
पृथक्त्व (15) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| *पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य = कोई एक जीव तिर्यञ्चों में उत्पन्न हुआ ->24 पूर्वकोटि (संज्ञी स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में क्रमश: आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +24 पूर्वकोटि (असंज्ञी स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +अन्तर्मुहूर्त (लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हुआ) +24 पूर्वकोटि (असंज्ञी पर्याप्त होकर वहां स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद के साथ क्रमशः आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +23 पूर्वकोटि (संज्ञी स्त्री-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि और पुरुषवेदियों में सात पूर्वकोटि काल तक रह कर) +तीन पल्य (उत्तम भोगभूमि में रहकर देव हो जाता है) |
| सभी लब्ध्यपर्याप्त का काल तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के समान देखना चाहिए |
| मनुष्य |
पंचेन्द्रिय |
खुद्दाभवगहण |
पृथक्त्व (47) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| पंचेन्द्रिय पर्याप्त |
अन्तर्मुहूर्त |
पृथक्त्व (23) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| पंचेन्द्रिय योनिनी |
अंतर्मुहूर्त |
पृथक्त्व (7) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य |
| *पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य = कोई एक जीव मनुष्य में उत्पन्न हुआ ->24 पूर्वकोटि (स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में क्रमश: आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +अन्तर्मुहूर्त (लब्ध्यपर्याप्त में उत्पन्न हुआ) +23 पूर्वकोटि (स्त्री-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि और पुरुषवेदियों में सात पूर्वकोटि काल तक रह कर) +तीन पल्य (उत्तम भोगभूमि में रहकर देव हो जाता है) |
| लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य का काल तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के समान देखना चाहिए |
| उक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल देशोन पूर्वकोटि है |
| देव |
सामान्य |
अंतर्मुहूर्त |
33 सागर |
| भवनवासी |
दस हजार वर्ष |
साधिक एक सागर |
| व्यंतर |
दस हजार वर्ष |
साधिक पल्य |
| ज्योतिष |
पल्य के आठवें भाग प्रमाण |
साधिक पल्य |
| सौधर्म-ऐशान |
साधिक पल्य |
साधिक 2 सागर |
| सनत्कुमार-माहेन्द्र |
साधिक 2 सागर |
साधिक 7 सागर |
| ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर |
साधिक 7 सागर |
साधिक 10 सागर |
| लान्तव-कापिष्ठ |
साधिक 10 सागर |
साधिक 14 सागर |
| शुक्र-महाशुक्र |
साधिक 14 सागर |
साधिक 16 सागर |
| सतार-सहस्रार |
साधिक 16 सागर |
साधिक 18 सागर |
| आनत-प्राणत |
साधिक 18 सागर |
20 सागर |
| आरण-अच्युत |
साधिक 20 सागर |
22 सागर |
| नौ ग्रेवेयक |
क्रमश: साधिक 22,23,24,25,26,27,28,29,30 सागर |
क्रमश: 23,24,25,26,27,28,29,30,31 सागर |
| नव अनुदिश |
साधिक 31 सागर |
32 सागर |
| चार अनुत्तर |
साधिक 32 सागर |
33 सागर |
| सर्वार्थ-सिद्धि |
33 सागर |
33 सागर |
| इन्द्रिय |
एकेंद्रिय |
सामान्य |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अनन्त (असंख्यात [आवली के असंख्यात भाग] पुद्गल परिवर्तन) |
| बादर |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल |
| बादर-पर्याप्त |
अंतर्मुहूर्त |
संख्यात हजार वर्ष |
| बादर-लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| सूक्ष्म |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
असंख्यात लोकप्रमाण काल |
| सूक्ष्म-पर्याप्त |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| सूक्ष्म-लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| विकलत्रय |
२,३,४ और २,३,४ पर्याप्तक |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल, अंतर्मुहूर्त |
संख्यात हजार वर्ष |
| लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| पंचेंद्रिय |
पंचेंद्रिय |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
पृथक्त्व पूर्व-कोटी + १००० सागर |
| पर्याप्त |
अंतर्मुहूर्त |
पृथक्त्व पूर्व-कोटी + पृथक्त्व सौ सागर |
| लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| काय |
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
असंख्यात लोकप्रमाण काल |
| पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, प्रत्येक वनस्पति |
बादर |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
कर्म-स्तिथि प्रमाण (70 कोड़कोड़ी सागर) |
| बादर पर्याप्त |
अंतर्मुहूर्त |
संख्यात हजार वर्ष |
| लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, निगोद |
पर्याप्त, अपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
असंख्यात लोकप्रमाण काल |
| वनस्पति |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अनन्त (असंख्यात (आवली के असंख्यात भाग) पुद्गल परिवर्तन) |
| निगोद |
सामान्य |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अढाई पुद्गल परिवर्तन |
| बादर |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
कर्म-स्तिथि प्रमाण |
| त्रस |
त्रस और पर्याप्त |
अंतर्मुहूर्त |
२००० सागर + पृथक्त्व पूर्व-कोटि, २००० सागर |
| लब्ध्यपर्याप्त |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अंतर्मुहूर्त |
| योग |
5 मन, 5 वचन |
एक समय |
अंतर्मुहूर्त |
| काय |
सामान्य |
एक समय |
अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन) |
| औदारिक |
एक समय |
कुछ कम २२ हजार वर्ष |
| औदारिक-मिश्र |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल - ३ समय |
अंतर्मुहूर्त |
| वैक्रियिक |
एक समय |
अंतर्मुहूर्त |
| वैक्रियिक-मिश्र |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| आहारक |
एक समय |
अंतर्मुहूर्त |
| आहारक-मिश्र |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| कार्मण |
एक समय |
तीन समय |
| काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्य एक समय और उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त है |
| औदारिक-मिश्र काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है |
| कार्मण-काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का काल जघन्य और उत्कृष्ट दोनों तीन समय है |
| वेद |
स्त्री |
*एक समय |
पृथक्त्व सौ पल्य |
| पुरुष |
अंतर्मुहूर्त |
पृथक्त्व सौ सागर |
| नपुंसक |
*एक समय |
अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन) |
| अपगत |
एक समय |
अंतर्मुहूर्त |
| *जो पहले स्त्री वेदी या नपुंसकवेदी था वह उपशम श्रेणी से उतरते समय सवेदी हुआ और दूसरे समय में मरकर पुरुष वेद के साथ देव हुआ |
| कषाय |
क्रोध, मान, माया, लोभ |
*अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| एक मत के अनुसार क्रोधादि कषाय एक समय रहकर भी मरणादिक के निमित्त से बदली जा सकती हैं। और दूसरे मत के अनुसार क्रोधादि का जघन्य काल भी अन्तमुहूर्त से कम नहीं होता है। |
| ज्ञान |
मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी |
अनादि-अनन्त |
अनंत |
| अनादि-सान्त |
अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन |
| सादि-सान्त |
अन्तर्मुहूर्त |
अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन |
| विभंगावधि |
एक समय |
देशोन 33 सागर |
| उपशम् सम्यग्दृष्टि देव या नारकी जीव उपशम सम्यक्त्व के काल में एक समय शेष रहने पर सासादन सम्यग्दृष्टि होकर द्वितीय समय में मरकर जब तिर्यंच या मनुष्य हो |
| मति-श्रुत-अवधि |
अन्तर्मुहूर्त |
कुछ अधिक छियासठ सागर |
| मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है |
| मन:पर्यय |
अन्तमुहूर्त |
देशोन पूर्वकोटि |
| संयम |
संयत |
अन्तर्मुहूर्त |
देशोन पूर्वकोटि |
| मोहनीय अविभक्ति का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटि |
| सामायिक, छेदोपस्थापना |
एक समय |
देशोन पूर्वकोटि |
| परिहारिविशुद्धि |
अन्तमुहूर्त |
देशोन (अडतीस वर्ष कम) पूर्वकोटि |
| सूक्ष्म-साम्परायिक सुद्धि संयत |
एक समय |
अन्तमुहूर्त |
| यथाख्यात |
एक समय |
अन्तमुहूर्त |
| संयतासंयत |
अन्तमुहूर्त |
देशोन (अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व कम) पूर्वकोटि |
| असंयत |
मत्यज्ञानियों के समान |
| दर्शन |
चक्षु-दर्शन |
अंतर्मुहूर्त |
२००० सागर |
| मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है |
| अचक्षु-दर्शन |
- |
अनंत |
| अवधि |
अन्तर्मुहूर्त |
कुछ अधिक छियासठ सागर |
| लेश्या |
कृष्ण |
अंतर्मुहूर्त |
33 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त |
| नील |
17 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त |
| कापोत |
7 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त |
| तेज |
2 सागर + अंतर्मुहूर्त |
| पद्म |
कुछ अधिक 18 सागर |
| शुक्ल |
कुछ अधिक 33 सागर |
| भव्य |
भव्यसिद्धिक |
अंतर्मुहूर्त |
कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन |
| अभव्यसिद्धिक |
अनादि-अनन्त |
| सम्यक्त्व |
सम्यग्दृष्टि |
क्षायिकसम्यग्दृष्टि |
अंतर्मुहूर्त |
साधिक 33 सागर |
| वेदक |
अंतर्मुहूर्त |
66 सागर |
| उपशम |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| सासादन |
एक समय |
6 आवली |
| सम्यग्मिथ्यादृष्टि |
अंतर्मुहूर्त |
अंतर्मुहूर्त |
| मिथ्यादृष्टि |
मत्यज्ञानियों के समान |
| संज्ञी |
संज्ञी |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
पृथक्त्व सौ सागर |
| मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है |
| असंज्ञी |
क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन) |
| आहार |
आहारक |
3 समय कम क्षुद्र-भव ग्रहण काल |
असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल |
| मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल मनुष्यों के समान |
| अनाहारक |
मोहनीय विभक्ति का काल कार्मण-काययोगियों के समान |
| मोहनीय अविभक्तिका काल ओघ के समान है। इतनी विशेषता है कि मोहनीय अविभक्ति का जघन्य काल तीन समय है |
| कसायपाहुड़ - पुस्तक 2, मूल-प्रकृति विभक्ति में कालानुगम |