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चक्रवर्ती के 14 रत्न

  विशेष 

विशेष :


चक्रवर्ती के 14 रत्न
कार्य उत्पत्ति स्थान संज्ञा
जीव रत्न गज सवारी वैताढ्य पर्वत के मूल में विजयगिरि
अश्व सवारी वैताढ्य पर्वत के मूल में पवनंजय
सेनापति देशों को विजय करते हैं राजधानी आयोध्य
पुरोहित दैवी उपद्रवों की शांति के अर्थ अनुष्ठान करना राजधानी बुद्धिसागर
स्त्री उपभोग का विषय विद्याधरों की श्रेणी में सुभद्रा
वार्धिक भूमि, महल, सड़क आदि का निर्माण करते हैं राजधानी कामवृष्टि
गृहपति राजभवन की समस्त व्यवस्था का संचालन और हिसाब रखना राजधानी भद्रमुख
अजीव रत्न छत्र सेना के ऊपर 12 योजन तक छत्र बनना आयुध-शाला सूर्यप्रभ
असि शत्रु का संहार आयुध-शाला भद्रमुख
दण्ड वैताढ्य पर्वत की दोनों गुफाओं के द्वार खोलना आयुध-शाला प्रवृद्धवेग
चक्र छह खण्ड साधने का रास्ता बताना आयुध-शाला सुदर्शन
कांकिणी गुफाओं में सूर्य के समान प्रकाश करना लक्ष्मी / श्री गृह चिंता जननी
चिंतामणि इच्छित पदार्थों को प्रदान करना लक्ष्मी / श्री गृह चूड़ामणि
चर्म नदी आदि जलाशयों में नाव-रूप हो जाना लक्ष्मी / श्री गृह
हरिवंशपुराण 11/109 -- इन रत्नों में से प्रत्येक की एक-एक हजार देव रक्षा करते थे।
तिलोयपण्णत्ति/4/ 1382 किन्हीं आचार्यों के मत से इनकी उत्पत्ति का नियम नहीं। यथायोग्य स्थानों में उत्पत्ति।