+ अधर्म द्रव्य का लक्षण -
(दोहरा)
ज्यौं पंथी ग्रीषमस मै, बैठै छायामाँहि ।
त्यौं अधर्म की भूमि मैं, जड़ चेतन ठहराँहि ॥२३॥
अन्वयार्थ : (दोहरा)
ज्यौं पंथी ग्रीषमस मै, बैठै छायामाँहि ।
त्यौं अधर्म की भूमि मैं, जड़ चेतन ठहराँहि ॥२३॥