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अन्वयार्थ : गाथा सारिणि - ज्ञानतत्व प्रज्ञापन (सम्यग्ज्ञान) महाधिकार - १०१ गाथा

  अमृतचंद्राचार्य    जयसेनाचार्य 

जयसेनाचार्य :

ग्रंथ की गाथा-सारणी
क्रम अधिकार संख्या आ. जयसेन कृत अधिकार का नाम गाथा कुल गाथाऐं आ. अमृतचंद्र कृत अधिकार का नाम गाथा कुल गाथाऐं
1 प्रथम महाधिकार सम्यग्ज्ञान 1 से 101 101 ज्ञानतत्त्व प्रज्ञापन 1 से 92 92
2 द्वितीय महाधिकार सम्यग्दर्शन 102 से 214 113 ज्ञेयतत्त्व प्रज्ञापन 93 से 200 108
3 तृतिय महाधिकार सम्यक्चारित्र 215 से 311 97 चरणानुयोग सूचक चूलिका 201 से 275 75
3 अधिकार 311 275


अधिकार अन्तराधिकार स्थल कुल गाथा
शुद्धोपयोग - ७२ (१ - ७२) पीठिका - १४ (१ - १४) नमस्कार मुख्यता (१ - ५)
चरित्र कथन (६ - ८)
तीन उपयोग कथन (९ - १०)
उपयोग फल कथन (११ - १२)
शुद्धोपयोग फल तथा लक्षण (१३ - १४)
सामान्य सर्वज्ञ सिद्धि - ७ (१५ - २१) सर्वज्ञ स्वभाव कथन (१५ - १६)
सर्वज्ञ की उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्थापना (१७ - १८)
सर्वज्ञ श्रद्धा से अनन्त सुख ( १९)
अतीन्द्रिय ज्ञान तथा केवली कवलाहार निषेध (२० - २१)
ज्ञानप्रपंच - ३३ (२२ - ५४) केवलज्ञान मे सब प्रत्यक्ष हैं (२२ - २३)
आत्मा व्यवहार से सर्वगत है (२४ - २८)
ज्ञान ज्ञेय का परस्पर गमन निराकरण (२९ - ३३)
निश्चय व्यवहार केवली प्रतिपादन (३४ - ३७)
वर्त्तमान ज्ञान त्रिकालज्ञ (३८ - ४२)
बंधकारक ज्ञान नहीं, राग है (४३ - ४७)
केवलज्ञान - सर्वज्ञता (४८ - ५२)
ज्ञानप्रपंच उपसंहार (५३ - ५४)
सुखप्रपंच - १८ (५५ -७२) अधिकार गाथा (५५)
अतीन्द्रिय ज्ञान की प्रधानता परक (५६)
इन्द्रिय ज्ञान की प्रधानता परक (५७ - ६०)
अतीन्द्रिय सुख की प्रधानता परक (६१ - ६४)
इन्द्रिय सुख प्रतिपादन परक (६५ - ७२)
ज्ञानकण्डिका चतुष्टय प्रतिपादक - २५ (७३ -९७) शुभाशुभ मूढता निराकरण - १० (७३ - ८२) स्वतंत्र व्याख्यान (७३ - ७६)
तृष्णोत्पादक पुण्य (७७ - ८०)
उपसंहार (८१ - ८२)
आप्त-आत्मा के स्वरूप परिज्ञान विषयक मूढता निराकरण - ७ (८३ -८१) शुद्धात्मा प्राप्ति का उपाय एकमात्र शुद्धोपयोग (८३)
सिद्ध दशा प्राप्ति का उपाय एकमात्र शुद्धोपयोग (८४)
निर्दोषी परमात्मा की श्रद्धा का फल अक्षय सुख (८५)
मोह क्षय का उपाय (८६)
शुद्धात्मारूप चिंतामणि की रक्षा का उपाय (८७)
मोक्ष प्राप्ति का अनाद्यानंत एक उपाय (८८)
रत्नत्रय आराधक पुरुष ही पुजादी के योग्य (८९)
द्रव्य गुण पर्याय परिज्ञान विषयक मूढ़ता का निराकरण - ६ (१० - १५) मोह के स्वरुप और भेद का प्रतिपादन (९०)
दुःख और बंध के कारक रागादी निर्मूल नष्ट करने योग्य (९१ - ९२)
आत्मा की जानकारी आगमाभ्यास की अपेक्षा रखता है (९३)
द्रव्य गुण पर्यायों की अर्थ संज्ञा है (९४)
संपूर्ण दुखों का क्षय, मोहादी का नष्ट करना है (९५)
स्व पर तत्व परिज्ञान विषयक मूढता निराकरण - २ (१६,१७) मोह क्षय का उपाय स्वपर भेद विज्ञान (९६)
स्वपर भेद विज्ञान का उपाय आगम (९७)
स्वतंत्र गाथा चतुष्टय - ४ (९८ - १०१) तत्वश्रद्धान रहित श्रमण के शुद्धोपयोग लक्षण धर्म नहीं होता है (९८)
शुद्धोपयोगी आत्मा ही धर्म है (९९)
शुद्धोपयोगी मुनि के प्रति भक्ति का फल (१००)
उस पुण्य से दुसरे भव मे फल (१०१)