| अधिकार |
अन्तराधिकार |
स्थल |
कुल गाथा |
| शुद्धोपयोग - ७२ (१ - ७२) |
पीठिका - १४ (१ - १४) |
नमस्कार मुख्यता |
५ (१ - ५) |
| चरित्र कथन |
३ (६ - ८) |
| तीन उपयोग कथन |
२ (९ - १०) |
| उपयोग फल कथन |
२ (११ - १२) |
| शुद्धोपयोग फल तथा लक्षण |
२ (१३ - १४) |
| सामान्य सर्वज्ञ सिद्धि - ७ (१५ - २१) |
सर्वज्ञ स्वभाव कथन |
२ (१५ - १६) |
| सर्वज्ञ की उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्थापना |
२ (१७ - १८) |
| सर्वज्ञ श्रद्धा से अनन्त सुख |
१ ( १९) |
|
| अतीन्द्रिय ज्ञान तथा केवली कवलाहार निषेध |
२ (२० - २१) |
| ज्ञानप्रपंच - ३३ (२२ - ५४) |
केवलज्ञान मे सब प्रत्यक्ष हैं |
२ (२२ - २३) |
| आत्मा व्यवहार से सर्वगत है |
५ (२४ - २८) |
| ज्ञान ज्ञेय का परस्पर गमन निराकरण |
५ (२९ - ३३) |
| निश्चय व्यवहार केवली प्रतिपादन |
४ (३४ - ३७) |
| वर्त्तमान ज्ञान त्रिकालज्ञ |
५ (३८ - ४२) |
| बंधकारक ज्ञान नहीं, राग है |
५ (४३ - ४७) |
| केवलज्ञान - सर्वज्ञता |
५ (४८ - ५२) |
| ज्ञानप्रपंच उपसंहार |
२ (५३ - ५४) |
| सुखप्रपंच - १८ (५५ -७२) |
अधिकार गाथा |
१ (५५) |
| अतीन्द्रिय ज्ञान की प्रधानता परक |
१ (५६) |
| इन्द्रिय ज्ञान की प्रधानता परक |
४ (५७ - ६०) |
| अतीन्द्रिय सुख की प्रधानता परक |
४ (६१ - ६४) |
| इन्द्रिय सुख प्रतिपादन परक |
८ (६५ - ७२) |
| ज्ञानकण्डिका चतुष्टय प्रतिपादक - २५ (७३ -९७) |
शुभाशुभ मूढता निराकरण - १० (७३ - ८२) |
स्वतंत्र व्याख्यान |
४ (७३ - ७६) |
| तृष्णोत्पादक पुण्य |
४ (७७ - ८०) |
| उपसंहार |
२ (८१ - ८२) |
| आप्त-आत्मा के स्वरूप परिज्ञान विषयक मूढता निराकरण - ७ (८३ -८१) |
शुद्धात्मा प्राप्ति का उपाय एकमात्र शुद्धोपयोग |
१(८३) |
| सिद्ध दशा प्राप्ति का उपाय एकमात्र शुद्धोपयोग |
१(८४) |
| निर्दोषी परमात्मा की श्रद्धा का फल अक्षय सुख |
१(८५) |
| मोह क्षय का उपाय |
१(८६) |
| शुद्धात्मारूप चिंतामणि की रक्षा का उपाय |
१(८७) |
| मोक्ष प्राप्ति का अनाद्यानंत एक उपाय |
१(८८) |
| रत्नत्रय आराधक पुरुष ही पुजादी के योग्य |
१(८९) |
| द्रव्य गुण पर्याय परिज्ञान विषयक मूढ़ता का निराकरण - ६ (१० - १५) |
मोह के स्वरुप और भेद का प्रतिपादन |
१(९०) |
| दुःख और बंध के कारक रागादी निर्मूल नष्ट करने योग्य |
२(९१ - ९२) |
| आत्मा की जानकारी आगमाभ्यास की अपेक्षा रखता है |
१(९३) |
| द्रव्य गुण पर्यायों की अर्थ संज्ञा है |
१(९४) |
| संपूर्ण दुखों का क्षय, मोहादी का नष्ट करना है |
१(९५) |
| स्व पर तत्व परिज्ञान विषयक मूढता निराकरण - २ (१६,१७) |
मोह क्षय का उपाय स्वपर भेद विज्ञान |
१(९६) |
| स्वपर भेद विज्ञान का उपाय आगम |
१(९७) |
| स्वतंत्र गाथा चतुष्टय - ४ (९८ - १०१) |
तत्वश्रद्धान रहित श्रमण के शुद्धोपयोग लक्षण धर्म नहीं होता है |
१(९८) |
| शुद्धोपयोगी आत्मा ही धर्म है |
१(९९) |
| शुद्धोपयोगी मुनि के प्रति भक्ति का फल |
१(१००) |
| उस पुण्य से दुसरे भव मे फल |
१(१०१) |