प्रभाचन्द्र : संस्कृत
एवमभिमन्यमानश्चासौ किं करोतीत्याह -- देहे स्वबुद्धित्मबुद्धिरार्बहिरात्मा किं करोति? आत्मानं युनक्ति सम्बद्धं करोति दीर्घसंसारिणं करोतीत्यर्थः। केन? एतेन देहेन। निश्चयात् परमार्थेन स्वात्मन्येव जीवस्वरूपे एव आत्मधीरन्तरात्मा। निश्चयाद्वियोजयति असम्बद्धं करोति देहिनं ॥१३॥ शरीर में स्वबुद्धि (आत्मबुद्धि) करनेवाला बहिरात्मा क्या करता है ? वह (अपने) आत्मा को, (शरीर के साथ) जोड़ता है- (उसके साथ) सम्बन्ध करता है; उसको दीर्घ संसारी करता है - ऐसा अर्थ है । किसके साथ (जोड़ता है)? निश्चय से अर्थात् निश्चित उस शरीर के साथ (जोड़ता है), किन्तु आत्मा में ही - जीवस्वरूप में ही आत्मबुद्धिवाला अन्तरात्मा, निश्चय से उसे (आत्मा को) उससे (शरीर से) पृथक् करता है - (शरीर के साथ) असम्बद्ध करता है ॥१३॥ शरीर में आत्मा का सम्बन्ध जोड़नेवाले बहिरात्मा के निंदनीय व्यापार को बतलाकर खेद प्रगट कराते हुए आचार्य कहते हैं -- |