प्रभाचन्द्र :
इस प्रकार अर्थात् आगे कहे जानेवाले न्याय से, बाह्यवचन को, अर्थात् स्त्री-पुत्र, धन-धान्यादिरूप बाह्यार्थवाचक शब्दों को; अशेषपने, अर्थात् सम्पूर्णरूप से तजकर, फिर अन्तरङ्गवचन को, अर्थात् मैं प्रतिपादक (गुरु), मैं प्रतिपाद्य (शिष्य), सुखी, दुःखी, चेतन इत्यादिरूप अन्तर्जल्प का पूर्णरूप से त्याग करना । इन बहिर्जल्प - अन्तर्जल्प के त्यागस्वरूप योग, अर्थात् स्वरूप में चित्त निरोध लक्षण समाधि; प्रदीप, अर्थात् स्वरूप प्रकाशक है । किसकी? परमात्मा की । किस प्रकार ? समास से, अर्थात् संक्षेप से शीघ्रतया वह परमात्मस्वरूप की प्रकाशक है -- ऐसा अर्थ है ॥१७॥ फिर, अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग वचन-प्रवृत्ति का त्याग किस प्रकार करना? - वह कहते हैं -- |