+ आत्मा को जानने का उपाय -
एवं त्यक्त्वा बहिर्वाचं त्यजेदन्तरशेषत:
एष योग: समासेन प्रदीप: परमात्मन: ॥17॥
बाहिर वचन विलास तज, तज अन्तर मन भोग ।
है परमात्म प्रकाश का, थोड़े में यह योग ॥१७॥
अन्वयार्थ : [एवं] आगामी श्लोक में कही जानेवाली विधि के अनुसार [बहिर्वाच] बाह्य अर्थवाचक वचन-प्रवृत्ति को [त्यक्त्वा] त्याग करके [अन्त:] अन्तरङ्ग वचन-प्रवृत्ति को भी [अशेषत] सम्पूर्णपने [त्यजेत्] तजना । [एष:] यह [योग:] योग, अर्थात् समाधि [समासेन] संक्षिप्त में [परमात्मन] परमात्मस्वरूप का [प्रदीप:] प्रकाशक दीपक है ।
Meaning : Bring to a halt all conversations with others and within yourself. This is, in brief, the method of illuminating the ultimate self.

  प्रभाचन्द्र    वर्णी 

प्रभाचन्द्र :

इस प्रकार अर्थात् आगे कहे जानेवाले न्याय से, बाह्यवचन को, अर्थात् स्त्री-पुत्र, धन-धान्यादिरूप बाह्यार्थवाचक शब्दों को; अशेषपने, अर्थात् सम्पूर्णरूप से तजकर, फिर अन्तरङ्गवचन को, अर्थात् मैं प्रतिपादक (गुरु), मैं प्रतिपाद्य (शिष्य), सुखी, दुःखी, चेतन इत्यादिरूप अन्तर्जल्प का पूर्णरूप से त्याग करना । इन बहिर्जल्प - अन्तर्जल्प के त्यागस्वरूप योग, अर्थात् स्वरूप में चित्त निरोध लक्षण समाधि; प्रदीप, अर्थात् स्वरूप प्रकाशक है । किसकी? परमात्मा की । किस प्रकार ? समास से, अर्थात् संक्षेप से शीघ्रतया वह परमात्मस्वरूप की प्रकाशक है -- ऐसा अर्थ है ॥१७॥

फिर, अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग वचन-प्रवृत्ति का त्याग किस प्रकार करना? - वह कहते हैं --