प्रभाचन्द्र :
रूप, अर्थात् शरीरादिरूप जो दिखायी देता है, अर्थात् इन्द्रियों द्वारा मेरे से ज्ञात होता है, वह अचेतन होने से, (मेरे) बोले हुए वचनों को सर्वथा नहीं जानता; जो जानता (समझता) हो, उसके साथ वचन-व्यवहार योग्य है; अन्य के साथ (वचन व्यवहार) योग्य नहीं, क्योंकि अति प्रसङ्ग आता है; और जो रूप, अर्थात् चेतन - आत्मस्वरूप जानता है, वह तो इन्द्रियों द्वारा दिखता नहीं, ज्ञात होता नहीं; यदि ऐसा है तो मैं किसके साथ बातचीत करूँ ? ॥१८॥ इस प्रकार बाह्य विकल्पों का परित्याग करके, आभ्यन्तर विकल्पों को छुड़ाते हुए कहते हैं :- |