
प्रभाचन्द्र :
आत्मस्वरूप समझ में आये या न समझ में आवे, तो भी यह लोक मेरे प्रति शत्रु-मित्र भाव कैसे करे ? प्रथम तो (आत्मस्वरूप) न समझे तो भी वह न करे, क्योंकि यह लोक मुझे देखता नहीं; इसलिए वह मेरा शत्रु नहीं और मेरा मित्र नहीं; जहाँ वस्तु-स्वरूप न समझ में आवे, वहाँ भी रागादि की उत्पत्ति हो तो अतिप्रसङ्ग आयेगा । (वस्तुस्वरूप) समझ में आने पर भी न (कोई मेरा शत्रु-मित्र है), क्योंकि यह (ज्ञानी) लोक, मुझे देखता (जानता) होने से, वह न मेरा शत्रु है, न मेरा मित्र है । आत्म-स्वरूप की प्रतीति होने पर, रागादि का क्षय (अभाव) होने से, कथंचित् भी शत्रु-मित्रभाव किस प्रकार हो सकता है ? उस भावना का फल दर्शाते हुए कहते हैं : - |