यों बहिरातम दृष्टि तज, हो अंतर-मुख आत्म । सर्व विकल्प विमुक्त हो, ध्यावे निज परमात्म ॥२७॥
अन्वयार्थ : [एवं] इस प्रकार [बहिरात्मान] बहिरात्मपने को [त्यक्तवा] छोडकर, [अंतरात्मव्यवस्थित] अन्तरात्मा में स्थित होते हुए [सर्वसंकल्पवर्जित] सर्व सङ्कल्प विकल्पों से रहित [परमात्मान] परमात्मा को [भावयेत्] ध्याना चाहिए ।
Meaning : Give up the bahirAtmA (external self), remain in the antarAtmA (internal self)(by meditating) and concentrate fully on the paramAtmA (supreme self), without any extraneous goals or desires.
प्रभाचन्द्र वर्णी
प्रभाचन्द्र :
इस प्रकार, अर्थात् उक्त प्रकार से अन्तरात्मा में व्यवस्थित होकर और बहिरात्मा का त्याग करके, परमात्मा की भावना करना । कैसा होकर ? सर्व सङ्कल्पों (विकल्पजाल) से रहित होकर, अर्थात् सर्व-सङ्कल्प से मुक्त होकर (परमात्मा भावना करना) ॥२७॥