आत्मबुद्धि ही देह में, देहान्तर का मूल । आत्मबुद्धि जब आत्म में, हो तन ही निर्मूल ॥७४॥
अन्वयार्थ : [अस्मिन् देहे] इस शरीर में [आत्मभावना] आत्मा की जो भावना (शरीर को ही आत्मा मानना) है - वही [देहान्तरगते:] अन्य शरीर ग्रहणरूप भवान्तर प्राप्ति का [बीजं] बीज (कारण) है और [आत्मनि एव] अपनी आत्मा में ही [आत्मभावना] आत्मा की जो भावना (आत्मा को ही आत्मा मानना) है, वह [विदेहनिष्पत्ते:] शरीर के सर्वथा त्यागरूप मुक्ति का [बीजं] कारण है ।
Meaning : The seeds of rebirth lie in identifying with the body. The seeds of liberation lie in identifying only with the soul.
प्रभाचन्द्र वर्णी
प्रभाचन्द्र :
अन्य देह में, अर्थात् अन्य भव में; गति अर्थात् गमन; उसका बीज अर्थात् कारण क्या? आत्मभावना । किसमें? इस देह में, अर्थात् कर्मवश ग्रहित इस देह में । विदेह निष्पत्ति का - विदेह की अर्थात् सर्वथा देहत्याग की निष्पत्ति (मुक्ति प्राप्ति) का बीज अपने आत्मा में ही आत्मभावना (करना वह) है ॥७४॥
तो मुक्ति-प्राप्ति का हेतु कोई गुरु होगा - ऐसा कहनेवाले के प्रति कहते हैं --