
प्रभाचन्द्र :
जो उते क्षाजाल, अर्थात् विकल्पजाल है, वह कैसा है? अन्तर्जल्प से युक्त, अर्थात् अन्तरत्र वचनव्यापार से युक्त है; वह आत्मा के दुःख का मूल, अर्थात् कारण है । उसका नाश होने पर, अर्थात् उस उतेक्षाजाल का (विकल्पजाल का) नाश होने पर, जो पद इष्ट, अर्थात् अभिलषित है (जिस पद की अभिलाषा की गयी है), वह शिष्ट है, अर्थात् उसका प्रतिपादन किया गया है ॥८५॥ उस उत्प्रेक्षाजाल के नाश करनेवाले को इस क्रम से करना चाहिए, यह कहते हैं : - |