+ आत्मा कथंचित ज्ञान -
ज्ञानाद्-भिन्नो न चाभिन्नो, भिन्नाभिन्नः कथंचन ।
ज्ञानं पूर्वापरीभूतं, सोऽयमात्मेति कीर्तितः ॥4॥
अन्वयार्थ : [पूर्वापरीभूतं ज्ञानं] पूर्वोत्तर ज्ञान से संपन्न [स अयं आत्मा] वह यह आत्मा [ज्ञानात्] ज्ञान से [भिन्नः न] भिन्न नहीं है [च] और [अभिन्नः न] अभिन्न नहीं है, [कथंचन] कथंचित (किसी अपेक्षा से) [भिन्नाभिन्नः] भिन्न और अभिन्न है, [इति कीर्तितः] इस प्रकार कहा है ॥४॥