+ जीव में एक-अनेकता -
नानाज्ञानस्वभावत्वादेकोऽनेकोऽपि नैव सः ।
चेतनैकस्वभावत्वादेकानेकात्मको भवेत् ॥6॥
अन्वयार्थ : [नाना-ज्ञान-स्वभावत्वात] अनेक प्रकार के ज्ञान-स्वरूप स्वभाव होने से [सः एक: अनेकः अपि नैव] वह एक (आत्मा) अनेक भी नहीं [चेतनैकस्वभावत्वात्] एक चेतना मात्र स्वभाव होने से [एकानेकात्मकः] एक-अनेकात्मक [भवेत्] है ॥६॥