
यथावद्-वस्तु-निर्णीतिः सम्यग्ज्ञानं प्रदीपवत् ।
तत्स्वार्थव्यवसायात्मा कथंचित्प्रमितेः पृथक् ॥12॥
अन्वयार्थ : [यथावद् वस्तुनिर्णीतिः] ज्यों-का-त्यों वस्तु का निर्णयात्मक ज्ञान [सम्यग्ज्ञानं] सम्यग्ज्ञान कहलाता है [तत्] वह [प्रदीपवत्] दीपक के समान [स्वार्थ-व्यवसायात्मा] स्वयं के एवं ज्ञेयभूत पदार्थ के निश्चयात्मक-ज्ञान-रूप होता है [प्रमितेः] प्रमिति से [कथंचित् पृथक्] कथंचित् भिन्न भी होता है ।