
तदेतन्मूलहेतोः स्यात्कारणं सहकारकम् ।
यद्-बाहृं देशकालादि तपश्च बहिरंगकम् ॥15॥
अन्वयार्थ : [तदेतन्मूलहेतोः] उस अन्तरंग मूल-हेतु रूप [कारणं] कारण का [सहकारकम्] सहकारी [देशकालादिः] देश व काल आदि [च] और [तपः] तप [यत्] जो [बाहृं] बाहर होने से [बहिरंगकम्] बहिरंग-कारण [स्यात्] है ।