+ राग-द्वेष रहित होकर सतत आत्म-भावना की प्रेरणा -
इतीदं सर्वमालोच्य, सौस्थ्ये दौःस्थ्ये च शक्तितः।
आत्मानं भावयेन्नित्यं, रागद्वेषविवर्जितम् ॥16॥
अन्वयार्थ : [इतीदं] इस प्रकार इसका (कहे गए आत्म-स्वरूप को) [सर्वमालोच्य] पूर्णतया विचार कर [शक्तितः] यथा-शक्ति [सौस्थ्ये दौःस्थ्ये च] अनुकूलता और प्रतिकूलता में [रागद्वेषविवर्जितम्] राग-द्वेष रहित होकर [आत्मानं भावयेन्नित्यं] सदा आत्मा-भावना करनी चाहिए ॥१६॥