
कषायैः रंजितं चेतस्तत्त्वं नैवावगाहते ।
नीलीरक्तेऽम्बरे रागो, दुराधेयो हि कौंकुमः ॥17॥
अन्वयार्थ : [कषायैः रंजितं] कषायों से रंगा हुआ [चेतः] मन [तत्त्वं] तत्त्व को [नैवं] नहीं [अवगाहते] ग्रहण कर पाता; [नीलीरक्ते-अम्बरे] नीले रंग से रंगे हुए कपड़े को [कौंकुमः रागः] कुंकुम से रंगना [हि दुराधेयो] निश्चित ही कठिन है ।