
हेयोपादेयतत्त्वस्य, स्थितिं विज्ञाय हेयतः ।
निरालम्बो भवान्यस्मादुपेये सावलम्बनः ॥19॥
अन्वयार्थ : [हेयोपादेयतत्त्वस्य] हेय और उपादेय तत्त्व के [स्थितिं] स्वरूप को [विज्ञाय] जान करके [अन्यस्मात् हेयतः] त्यागने योग्य का [निरालम्बः भव] आश्रय लेना छोड़कर [उपेये] ग्रहण करने योग्य का [सावलम्बनः] आलम्बन लो ।