
स्वपरं चेति वस्तु त्वं, वस्तरूपेण भावय ।
उपेक्षाभावनोत्कर्षपर्यन्ते शिवमाप्नुहि ॥20॥
अन्वयार्थ : [इति] इस प्रकार [स्वपरंच] स्व और पर की [त्वं] तू [वस्तुरूपेण] वस्तु-स्वभाव से [भावय] भावना करके [उपेक्षाभावनोत्कर्षपर्यन्ते] उपेक्षा भाव की पूर्ण वृद्धि हो जाने पर [शिवम्] मोक्ष को [आप्नुहि] प्राप्त कर ।