+ आत्मा क्या है -
कि वि भणंति जिउ सव्वगउ जिउ जडु के वि भणंति
कि वि भणंति जिउ देह-समु सुण्णु वि के वि भणंति ॥50॥
केऽपि भणन्ति जीवं सर्वगतं जीवं जडं केऽपि भणन्ति ।
केऽपि भणन्ति जीवं देहसमं शून्यमपि केऽपि भणन्ति ॥५०॥
अन्वयार्थ : [केऽपि जीवं सर्वगतं भणंति] कोई जीव को सर्वव्यापक कहते हैं, [केऽपि जीवं जडं भणंति] कोई जीव को जड़ कहते हैं, [केऽपि शून्यं अपि भणंति] कोई शून्य भी कहते हैं, [केऽपि जीवं देहसमं भणंति] कोई जीव को देहसमान कहते हैं ।
Meaning : Some persons hold that the Atman is Sarva-Vyapi (all pervading); some say that it is Jada (devoid of Jnana or knowledge); some maintain that the Atman is Deha Parimana (equal to the body), and there are others who assert that it is Shunya (void).

  श्रीब्रह्मदेव 

श्रीब्रह्मदेव : संस्कृत
अत उर्ध्वं स्वदेहप्रमाणव्याख्यानमुख्यत्वेन षट्सूत्राणि कथयन्ति । तद्यथा -

केऽपि भणन्ति जीवं सर्वगतं, जीवं केऽपि जडं भणन्ति, केऽपि भणन्ति जीवं देहसमं,शून्यमपि केऽपि वदन्ति । तथाहि - केचन सांख्यनैयायिकमीमांसकाः सर्वगतं जीवं वदन्ति ।सांख्याः पुनर्जडमपि कथयन्ति । जैनाः पुनर्देहप्रमाणं वदन्ति । बौद्धाश्च शून्यं वदन्तीति । एवंप्रश्नचतुष्टयं कृतमिति भावार्थः ॥५०॥


इससे आगे छह दोहा-सूत्रों में आत्मा व्यवहारनय से अपनी देह के प्रमाण है, यह कह सकते हैं -

नैयायिक, वेदान्ती और मीमांसक-दर्शनवाले जीव को सर्वव्यापक कहते हैं, सांख्य-दर्शनवाले जीव को जड़ कहते हैं, बौद्ध-दर्शनवाले जीव को शून्य भी कहते हैं, जिनधर्मी जीव को व्यवहारनय से देहप्रमाण कहते हैं, और निश्चयनय से लोकप्रमाण कहते हैं । वह आत्मा कैसा है ? और कैसा नहीं है ? ऐसे चार प्रश्न शिष्य ने किये, ऐसा तात्पर्य है ॥५०॥