+ मोक्ष अपने आप में -
जोइय णिय-मणि णिम्मलए पर दीसइ सिउ संतु ।
अंबरि णिम्मलि घण-रहिए भाणु जि जेम फुरंतु ॥119॥
योगिन् निजमनसि निर्मले परं द्रश्यते शिवः शान्तः ।
अम्बरे निर्मले घनरहिते भानुः इव यथा स्फुरन् ॥११९॥
अन्वयार्थ : [योगिन् निर्मले निजमनसि] हे योगी ! निर्मल अपने मन में [शिवःशांतः परं दृश्यते] शांत मोक्ष नियम से दिखता है [घनरिहते निर्मले अंबरे] बादल-रहित निर्मल आकाश में [भानुः इव स्फुरन् यथा] सूर्य के समान भासमान (प्रकाशमान) जैसे ।
Meaning : As the sun is visible in the sky when it is free from clouds, so is the Shiva or Parmatman visible in the Nirmala Mana (passionless mind).

  श्रीब्रह्मदेव 

श्रीब्रह्मदेव : संस्कृत
अथ कामक्रोधादिपरिहारेण शिवशब्दवाच्यः परमात्मा द्रश्यत इत्यभिप्रायं मनसि संप्रधार्य सूत्रमिदं कथयन्ति -

जोइय इत्यादि । [जोइय] हे योगिन् [णियमणि] निजमनसि । कथंभूते । [णिम्मलए] निर्मलेपरं नियमेन [दीसइ] द्रश्यते । कोऽसौ । कर्मतापन्नः [सिउ] शिवशब्दवाच्यो निजपरमात्मा । कथंभूतः । [संतु] शान्तः रागादिरहितः ।द्रष्टान्तमाह । अम्बरे आकाशे । कथंभूते । [णिम्मलि] निर्मले । पुनरपि कथंभूते । [घणरहिए] घनरहिते । क इव । [भाणु जि] भानुरिव यथा । किं कुर्वन् । [फुरंतु] स्फुरन् प्रकाशमान इति । अयमत्र तात्पर्यार्थः । यथा घनघटाटोपविघटने सतिनिर्मलाकाशे दिनकरः प्रकाशते तथा शुद्धात्मानुभूतिप्रतिपक्षभूतानां कामक्रोधादि-विकल्परुपघनानां विनाशे सति निर्मलचित्ताकाशे केवलज्ञानाद्यनन्तगुणकरकलितः निजशुद्धात्मादित्यः प्रकाशं करोतीति ॥११९॥


आगे काम क्रोधादि के त्यागने से शिव शब्द से कहा गया परमात्मा दिख जाता है, ऐसा अभिप्राय मन में रखकर यह गाथा-सूत्र कहते हैं -

जैसे मेघमाला के आडंबर से सूर्य नहीं भासता / दिखता और मेघ के आडंबर के दूर होने पर निर्मल आकाश में सूर्य स्पष्ट दिखता है, उसी तरह शुद्ध आत्मा की अनुभूति के शत्रु जो काम-क्रोधादि विकल्परूप मेघ हैं, उनके नाश होने पर निर्मल मनरूपी आकाश में केवलज्ञानादि अनंतगुणरूप किरणों से सहित निज शुद्धात्मारूपी सूर्य प्रकाश करता है ॥११९॥