
णियमेँ कहियउ एहु मइँ ववहारेण वि दिट्ठि ।
एवहिँ णाणु चरित्तु सुणि जेँ पावहि परमेट्ठि ॥28॥
नियमेन कथिता एषा मया व्यवहारेणापि द्रष्टिः ।
इदानीं ज्ञानं चारित्रं शृणु येन प्राप्नोषि परमेष्ठिनम् ॥२८॥
अन्वयार्थ : [मया व्यवहारेणैव] मैंने व्यवहारनय से [एषादृष्टिः] ये सम्यग्दर्शन का स्वरूप [नियमेन कथिता] अच्छी तरह कहा, [इदानीं] अब [ज्ञानं चारित्रं शृणु] ज्ञान और चारित्र को सुन, [येन परमेष्ठिनम् प्राप्नोषि] जिससे सिद्धपद को पावेगा ।
Meaning : From the Vyavahara point of view, I have given the description of Samyaka Darshan . Now hear thou the description of Samyaka Jnana and Samyaka Charitra in the same way, so that thou mightst obtain the Parmeshti .
श्रीब्रह्मदेव