+ परिग्रह-रहित को संवर-निर्जरा -
कम्मु पुरक्किउ सो खवइ अहिणव पेसु ण देइ ।
संगु मुएविणु जो सयलु उवसम-भाउ करेइ ॥39॥
कर्म पुराकृतं स क्षपयति अभिनवं प्रवेशं न ददाति ।
संगं मुक्त्वा यः सकलं उपशमभावं करोति ॥३९॥
अन्वयार्थ : [सः] वही [पुराकृतं कर्म] पूर्व उपार्जित कर्मों को [क्षपयति] क्षय करता है, और [अभिनवं] नये कर्मों को [प्रवेशं] प्रवेश [न ददाति] नहीं होने देता, [यः] जो कि [सकलं] सब [संगं] बाह्य अभ्यंतर परिग्रह को [मुक्त्वा] छोड़कर [उपशमभावं] परम शांतभाव को [करोति] करता है ।
Meaning : The Muni who gives up all Parigrala, and establishes himself in Sambhava (equanimity, evenness of mind), destroys his previously-acquired Karmas and stops the inflow of new ones.

  श्रीब्रह्मदेव