+ कषायों द्वारा असंयम -
जाँवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ ।
होइ कसायहँ वसि गयउ जीउ असंजदु सो ॥41॥
यावत् ज्ञानी उपशाम्यति तावत् संयतो भवति ।
भवति कषायाणां वशे गतः जीवः असंयतः स एव ॥४१॥
अन्वयार्थ : [यदा ज्ञानी जीवः] जिस समय ज्ञानी जीव [उपशाम्यति] शांतभाव को प्राप्त होता है, [तदा संयतः भवति] उस समय संयमी होता है, और [कषायाणां] क्रोधादि कषायों के [वशे गतः] आधीन हुआ [स एव] वही जीव [असंयतः भवति] असंयमी होता है ।
Meaning : So long as a Jnani (Sage) possesses. Sambhava (equanimity or tranquillity of mind), he is Samyami; when he is under the influence of Kashayas (passions, etc.) he is then Asamyami.

  श्रीब्रह्मदेव