
जेण कसाय हवंति मणि सो जिय मिल्लहि मोहु ।
मोह-कसाय-विवज्जयउ पर पावहि सम-बोहु ॥42॥
येन कषाया भवन्ति मनसि तं जीव मुञ्च मोहम् ।
मोहकषायविवर्जितः परं प्राप्नोषि समबोधम् ॥४२॥
अन्वयार्थ : [जीव येन] हे जीव; जिससे [मनसि कषायाः भवंति] मन में कषाय होवें, [तं मोहम्] उस मोह को [मुंच मोहकषायविवर्जितः] छोड़कर, मोह कषाय रहित हुआ तू [परं समबोधम्] नियम से राग-द्वेष रहित ज्ञान को [प्राप्नोषि] पावेगा ।
Meaning : That which produces Kashaya in mind is Moha which ought to be abandoned, for by the abandonment of Moha and Kashaya Sambhava is produced.
श्रीब्रह्मदेव