+ परमार्थ के ज्ञाता सुखी -
तत्तातत्तु मुणेवि मणि जे थक्का सम-भावि ।
ते पर सुहिया इत्थु जगि जहँ रइ अप्प-सहावि ॥43॥
तत्त्वातत्त्वं मत्वा मनसि ये स्थिताः समभावे ।
ते परं सुखिनः अत्र जगति येषां रतिः आत्मस्वभावे ॥४३॥
अन्वयार्थ : [ये] जो [तत्त्वातत्त्वं] तत्त्व और अतत्त्व को [मनसि] मन में [मत्वा] जानकर [समभावे स्थिताः] शांतभाव में तिष्ठते हैं, और [येषां रतिः] जिनकी लगन [आत्मस्वभावे] निज शुद्धात्म स्वभाव में हुई है, [ते परं] वे ही जीव [अत्र जगति] इस संसार में [सुखिनः] सुखी हैं ।
Meaning : The Sages who know the Tattva and the Atattva (self and not-self), who establish themselves in Sambhava (equanimity) and who become Leena immersed) in the contemplation of their Shuddha Atman (pure self) are verily happy.

  श्रीब्रह्मदेव