+ समभावधारी की निंदा द्वारा स्तुति -
बिण्णि वि दोस हवंति तसु जो सम-भाउ करेइ ।
बंधु जि णिहणइ अप्पणउ अणु जगु गहिलु करेइ ॥44॥
द्वौ अपि दोषौ भवतः तस्य यः समभावं करोति ।
बन्धं एव निहन्ति आत्मीयं अन्यत् जगद् ग्रहिलं करोति ॥४४॥
अन्वयार्थ : [यः] जो (साधु) [समभावं] राग-द्वेष के त्यागरूप समभाव को [करोति] करता है, [तस्य] उस (तपोधन) के [द्वौ अपि दोषौ] दो ही दोष [भवतः] होते हैं; [आत्मीयं बंधं एव निहंति] एक तो अपने बंध को नष्ट करता है, [पुनः] दूसरे [जगद् ग्रहिलं करोति] जगत् के प्राणियों को बावला (पागल) बना देता है ।
Meaning : There are two defects in him who adopts Sambhava (equinimity); firstly, he destroys his Karma-Bandha (bondage of Karmas); and secondly, he is, owing to his behaviour being contrary to that of the worldly people, called mad' by them.

  श्रीब्रह्मदेव