
गंथहँ उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ ।
गंथहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥49॥
ग्रन्थस्य उपरि परममुनिः द्वेषमपि करोति न रागम् ।
ग्रन्थाद् येन विज्ञातः भिन्नः आत्मस्वभावः ॥४९॥
अन्वयार्थ : [ग्रंथस्य उपरि] परिग्रह के ऊपर जो [परममुनिः] परम तपस्वी [रागम् द्वेषमपि न करोति] राग और द्वेष नहीं करता है [येन] जिस मुनि ने [आत्मस्वभावः] आत्मा का स्वभाव [ग्रंथात्] ग्रंथ से [भिन्नः विज्ञातः] जुदा जान लिया है ।
Meaning : Parama-Munis neither cherish attachment for Parigraha , nor do they entertain hatred towards them; they know that the Svabhava of Atman is distinct from Parigraha.
श्रीब्रह्मदेव