+ ज्ञानी के विषयों में राग-द्वेष नहीं -
विसयहँ उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ ।
विसयहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प-सहाउ ॥50॥
विषयाणां उपरि परममुनिः द्वेषमपि करोति न रागम् ।
विषयेभ्यः येन विज्ञातः भिन्नः आत्मस्वभावः ॥५०॥
अन्वयार्थ : [परममुनिः विषयाणां उपरि] महामुनि (पाँच इन्द्रियों के स्पर्शादि) विषयों पर [रागमपि द्वेषं] राग और द्वेष [न करोति] नहीं करता; [येन आत्मस्वभावः] जिसने अपना स्वभाव [विषयेभ्यः भिन्नः विज्ञातः] विषयों से जुदा समझ लिया है ।
Meaning : Great Ascetics do not entertain Raga (love or attachment) and Dvesha (hatred) towards any kind of Vishaya (pleasures of the senses or objects thereof); they know that the Svabhava (real nature) of Atman is distinct from them all.

  श्रीब्रह्मदेव