
जे णिय - दंसण - अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति ।
तिं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहंति ॥59॥
ये निजदर्शनाभिमुखाः सौख्यमनन्तं लभन्ते ।
तेन विना पुण्यं कुर्वाणा अपि दुःखमनन्तं सहन्ते ॥५९॥
अन्वयार्थ : [ये निजदर्शनाभिमुखाः] जो निज-दर्शन के सम्मुख हैं, [अनन्तंसुखं] अनन्त सुख को [लभन्ते] पाते हैं, [तेन विना] और उस के बिना [पुण्यं कुर्वाणा अपि] पुण्य भी करते हैं, [अनंतं दुःखम् सहंते] अनन्त दुःख भोगते हैं ।
Meaning : Those who are on the point of obtaining the Shuddha Atma-Darshana are undoubtedly to acquire the Ananta Sukha of Moksha ; while those who are without this true belief must, in spite of their virtuous deeds, bear infinite miseries, that is, wander about in this painful Samsara.
श्रीब्रह्मदेव