+ ज्ञानियों को ज्ञानमय भाव नहीं छोड़ना चाहिए -
वंदणु णिदणु पडिकमणु णाणिहिँ एहु ण जुत्तु ।
एक्कु जि मेल्लिवि णाणमउ सुद्धउ भाउ पवित्तु ॥65॥
वन्दनं निन्दनं प्रतिक्रमणं ज्ञानिनां इदं न युक्त म् ।
एकमेव मुक्त्वा ज्ञानमयं शुद्धं भावं पवित्रम् ॥६५॥
अन्वयार्थ : [वंदन निंदनं प्रतिक्रमणं] वंदना, निंदा, और प्रतिक्रमण [इदं] ये तीनों [ज्ञानिनां] ज्ञानियों को [युक्तम् न] ठीक नहीं हैं, [एकमेव] एक [ज्ञानमयं] ज्ञानमय [शुद्धं पवित्रम् भावं] पवित्र शुद्ध भाव को [मुक्त्वा] छोड़कर ।
Meaning : Excepting meditation on his Jnana-maee (embodiment of knowledge) and Shuddha (pure) Atman (soul), the sage who possesses pure thoughts does not do Vandana, Ninda and Pratik ramana.

  श्रीब्रह्मदेव