+ शुद्धोपयोग ही मुख्य -
सुद्धहँ संजमु सीलु तउ सुद्धहँ दंसणु णाणु ।
सुद्धहँ कम्मक्खउ हवइ सुद्धउ तेण पहाणु ॥67॥
शुद्धानां संयमः शीलं तपः शुद्धानां दर्शनं ज्ञानम् ।
शुद्धानां कर्मक्षयो भवति शुद्धो तेन प्रधानः ॥६७॥
अन्वयार्थ : [शुद्धानां] शुद्धोपयोगियों के ही [संयमः शील तपः] (पाँच इन्द्री और मन को रोकनेरूप) संयम, शील और तप [भवति] होते हैं, [शुद्धानां] शुद्धों के ही [दर्शनं ज्ञानम्] सम्यग्दर्शन और वीतराग स्व-संवेदनज्ञान और [शुद्धानां] शुद्धोपयोगियों के ही [कर्मक्षयः] कर्मों का नाश होता है, [तेन] इसलिये [शुद्धः] शुद्धोपयोग ही [प्रधानः] मुख्य है ।
Meaning : Absolute Sanyama (control of the senses and mercy for all living beings), pure Shila (character), true Darshana, perfect Jnana and the complete Kshai (destruction) of Karmas belong to Shuddha-Upyoga alone.

  श्रीब्रह्मदेव