+ शुद्ध-भाव बिना मुक्ति नहीं -
सिद्धिहिँ केरा पंथडा भाउ विसुद्धउ एक्कु ।
जो तसु भावहँ मुणि चलइ सो किम होइ विमुक्कु ॥69॥
सिद्वेः संबन्धो पन्थाः भावो विशुद्ध एकः ।
यः तस्माद्भावात् मुनिश्चलति स कथं भवति विमुक्त: ॥६९॥
अन्वयार्थ : [सिद्धेः संबंधी पंथाः] मुक्ति का मार्ग [एकः विशुद्धः भावः] एकमात्र शुद्ध भाव ही है [यः मुनिः] जो मुनि [तस्मात् भावात्] उस शुद्ध भाव से [चलति] चलायमान हो जावे, तो [सः कथं] वह कैसे [विमुक्तः भवति] मुक्त हो सकता है ?
Meaning : The way to Moksha (emancipation) lies in the Vishuddha Bhava fabsorption in the pure, real nature of Atman) alone; there is no other way, How can a Muni (saint) who falls down from that Bhava, attain to Moksha ?

  श्रीब्रह्मदेव