
णाण-विहीणहँ मोक्ख-पउ जीव म कासु वि जोइ ।
बहुएँ सलिल-विरोलियइँ करु चोप्पडउ ण होइ ॥74॥
ज्ञानविहीनस्य मोक्षपदं जीव मा कस्यापि अद्राक्षीः ।
बहुना सलिलविलोडितेन करः चिक्कणो न भवति ॥७४॥
अन्वयार्थ : [ज्ञानविहीनस्य] ज्ञान से रहित [कस्यापि] किसी के [मोक्षपदं] मोक्ष-पदवी [जीव] हे जीव, [मा द्राक्षीः] मत देख [बहुना] बहुत [सलिलविलोडितेन] पानी के मथने से भी [करः] हाथ [चिक्कणो] चीकना [न भवति] नहीं होता ।
Meaning : Without Jnana one does not get Moksha by any means ; one cannot get ghee from water, however much one might agitate it.
श्रीब्रह्मदेव