+ आत्म-बोध बिना ज्ञान और तप व्यर्थ -
जं णिय-बोहहँ बाहिरउ णाणु वि कज्जु ण तेण ।
दुक्खहँ कारणु जेण तउ जीवहँ होइ खणेण ॥75॥
यत् निजबोधाद्बाह्यं ज्ञानमपि कार्यं न तेन ।
दुःखस्य कारणं येन तपः जीवस्य भवति क्षणेन ॥७५॥
अन्वयार्थ : [यत् निजबोधात्] जो आत्म-बोध से [बाह्यं] बाहर (रहित) [ज्ञानमपि] (शास्त्र आदि का) ज्ञान भी है, [तेन] उससे [कार्यं न] कुछ काम नहीं, [येन] क्योंकि [तपः क्षणेन] तप शीघ्र ही [जीवस्य] (बोध-रहित) जीव को [दुःखस्य कारणं] दुःख का कारण [भवति] होता है ।
Meaning : That Jnana (knowledge) which is devoid of the Baudha (understanding or realization) of one's Shuddha Atma (pure soul) is of no avail ; it conduces to Dukkha (misery or pain) of the soul.

  श्रीब्रह्मदेव