+ आत्मज्ञान श्रेष्ठ -- उदाहरण -
अप्पा मिल्लिवि णाणमउ चित्ति ण लग्गइ अण्णु ।
मरगउ जेँ परियाणियउ तहुँ कच्चेँ कउ गण्णु ॥78॥
आत्मानं मुक्त्वा ज्ञानमयं चित्ते न लगति अन्यत् ।
मरकतः येन परिज्ञातः तस्य काचेन कुतो गणना ॥७८॥
अन्वयार्थ : [ज्ञानमयं आत्मानं मुक्त्वा] ज्ञानमयी आत्मा को छोड़कर [अन्यत् चित्ते] दूसरी वस्तु ज्ञानियों के मन में [न लगति] नहीं रुचती; [येन मरकतः] जिसने मरकतमणि (रत्न) [परिज्ञातः] जान लिया, [तस्य काचेन] उसको काँच से [किं गणनं] क्या प्रयोजन है ?
Meaning : The mind of a Sage does not feel delight in anything other than his Atman (self); one who knows the value of pearls does not run after glass-beads.

  श्रीब्रह्मदेव