+ शास्त्र-ज्ञान का प्रयोजन आत्म-ज्ञान -
बोह-णिमित्तेँ सत्थु किल लोइ पढिज्जइ इत्थु ।
तेण वि बोहु ण जासु वरु सो किं मूढु ण तत्थु ॥84॥
बोधनिमित्तेन शास्त्रं किल लोके पठयते अत्र ।
तेनापि बोधो न यस्य वरः स किं मूढो न तथ्यम् ॥८४॥
अन्वयार्थ : [अत्र लोके] इस लोक में [किल] नियम से [बोधनिमित्तेन] ज्ञान के निमित्त [शास्त्रं] शास्त्र [पठ्यते] पढ़े जाते हैं, [तेनापि] तब भी [यस्य] जिसको [वरः बोधः न] उत्तम ज्ञान नहीं हुआ, [स] वह [किं] क्या [तथ्यम् मूढः न] निस्संदेह मूर्ख नहीं है ?
Meaning : The Shastras are read in order to gain Jnana (knowledge), but he who having read them does not acquire Atma-Jiana (spiritual knowledge) is a fool.

  श्रीब्रह्मदेव