+ आत्म-ज्ञान बिना तीर्थ-भ्रमण से मुक्ति नहीं -
तित्थइँ तित्थु भमंताहँ मूढहँ मोक्खु ण होइ ।
णाण-विवज्जिउ जेण जिय मुणिवरु होइ ण सोइ ॥85॥
तीर्थं तीर्थं भ्रमतां मूढानां मोक्षो न भवति ।
ज्ञानविवर्जितो येन जीव मुनिवरो भवति न स एव ॥८५॥
अन्वयार्थ : [तीर्थं तीर्थं] तीर्थ तीर्थ प्रति [भ्रमतां] भ्रमण करनेवाले [मूढानां] मूर्खों को [मोक्षः] मुक्ति [न भवति] नहीं होती, [जीव] हे जीव, [येन] क्योंकि जो [ज्ञानविवर्जितः] ज्ञानरहित हैं, [स एव] वह [मुनिवरः न भवति] मुनिवर नहीं हैं ।
Meaning : A Mithya Drishti (one who does not possess the right faith) cannot get Moksha, even as one without Jonana (knowledge) cannot become a Muni (saint).

  श्रीब्रह्मदेव