
णाणिहिँ मूढहँ मुणिवरुहँ अंतरु होइ महंतु ।
देहु वि मिल्लइ णाणियउ जीवइँ भिण्णु मुणंतु ॥86॥
ज्ञानिनां मूढानां मुनिवराणां अन्तरं भवति महत् ।
देहमपि मुञ्चति ज्ञानी जीवाद्भिन्नं मन्यमानः ॥८६॥
अन्वयार्थ : [ज्ञानिनां] ज्ञानी और [मूढ़ानां मुनिवराणां] मिथ्यादृष्टि मुनियों में [महत् अंतरं] बड़ा भारी भेद [भवति ] होता है [ज्ञानी देहम् अपि] ज्ञानी तो शरीर को भी [जीवाद्भिन्नं] जीव से जुदा [मन्यमानः] जानकर [मुचंति] छोड़ देते हैं ।
Meaning : There is a great difference between a Jnani and an Ajmani Muni ; the Jnani knows the Jiva as separate and distinct from the Deha and wishes to abandon it even.
श्रीब्रह्मदेव