+ अज्ञानी धर्म के फल में संसार को चाहता है -
लेणहँ इच्छइ मूढु पर भुवणु वि एहु असेसु ।
बहु विह-धम्म-मिसेण जिय दोहिँ वि एहु विसेसु ॥87॥
लातुं इच्छति मूढः परं भुवनमपि एतद् अशेषम् ।
बहुविधधर्ममिषेण जीव द्वयोः अपि एष विशेषः ॥८७॥
अन्वयार्थ : [द्वयोः अपिः] दोनों (ज्ञानी और अज्ञानी) में [एष विशेषः] यह भेद है, कि [मूढोः बहुविधधर्ममिषेण] अज्ञानीजन अनेक प्रकार के धर्म के बहाने से [एतद् अशेषम्] इस समस्त [भुवनम् अपि] जगत् को ही [परं लातुं इच्छति] नियम से प्राप्त करने की इच्छा करता है ।
Meaning : And one who is Ajnani, wishes, under the pretext of Dharma (virtue), to take in the whole world ; this is the difference between the two.

  श्रीब्रह्मदेव