
चेल्ला-चेल्ली-पुत्थियहिँ तूसइ मूढु णिभंतु ।
एयहिँ लज्जइ णाणियउ बंधहँ हेउ मुणंतु ॥88॥
शिष्यार्जिकापुस्तकैः तुष्यति मूढो निर्भ्रान्तः ।
एतैः लज्जते ज्ञानी बन्धस्य हेतुं जानन् ॥८८॥
अन्वयार्थ : [मूढः] अज्ञानीजन [निर्भ्रान्तः] निस्संदेह [शिष्यार्जिकापुस्तकैः] शिष्य, आर्यिका, ग्रंथादिक के करने से [तुष्यति] हर्षित होता है, [ज्ञानी] और ज्ञानी [एतैः लज्जते] इनसे शरमाता है, और [बंधस्य हेतुं जानन्] बंध का कारण जानता है ।
Meaning : No doubt, a foolish saint takes pleasure in his disciples and books, but a Jnani knows this kind of conduct to be a cause of bondage, and becomes ashamed of it.
श्रीब्रह्मदेव