
लाहहँ कित्तिहि कारणिण जे सिव-संगु चयंति ।
खीला-लग्गिवि ते वि मुणि देउलु देउ डहंति ॥92॥
लाभस्य कीर्तेः कारणेन ये शिवसंगं त्यजन्ति ।
कीलानिमित्तं तेऽपि मुनयः देवकुलं देउ दहन्ति ॥९२॥
अन्वयार्थ : [ये लाभस्य] जो लाभ और [कीर्तिः कारणेन] कीर्ति के कारण [शिवसंग] परमात्मा के ध्यान को [त्यजंति] छोड़ देते हैं, [ते अपि मुनयः] वे ही मुनि [कीलानिमित्तं] लोहे के कीले के लिए [देवकुलं] देवस्थान को तथा [देवं] आत्मदेव को [दहंति] भस्म कर देते हैं ।
Meaning : The saint who for the sake of Lobha or Yashakirti gives up the Shuddha Atma Dhyana is like the man who for the sake of a nail pulls down a whole DevaMandira .
श्रीब्रह्मदेव