
देह-विभेयइँ जो कुणइ जीवइँ भेउ विचित्तु ।
सो णवि लक्खणु मुणइ तहँ दंसणु णाणु चरित्तु ॥102॥
देहविभेदेन यः करोति जीवानां भेदं विचित्रम् ।
स नैव लक्षणं मनुते तेषां दर्शनं ज्ञानं चारित्रम् ॥१०२॥
अन्वयार्थ : [यः] जो [देहविभेदेन] शरीरों के भेद से [जीवानां] जीवों का [विचित्रम्] नानारूप [भेदं] भेद [करोति] करता है, [स] वह [तेषां] उन जीवों का [दर्शनं ज्ञानं चारित्रम्] दर्शन-ज्ञान-चारित्र [लक्षणं] लक्षण [नैव मनुते] नहीं जानता ।
Meaning : Those who seeing differencez in the bodies, make a distinction between souls also, do not know the A.tman which in essence is Darshan , Jnana , and Charitra .
श्रीब्रह्मदेव