
अंगइँ सुहुमइँ बादरइँ विहिवसिँ होंति जे बाल ।
जिय पुणु सयल वि तित्तडा सव्वत्थ वि सयकाल ॥103॥
अङ्गानि सूक्ष्माणि बादराणि विधिवशेन भवन्ति ये बालाः ।
जीवाः पुनः सकला अपि तावन्तः सर्वत्रापि सदाकाले ॥१०३॥
अन्वयार्थ : [सूक्ष्माणि बादराणि] सूक्ष्म और बादर [अंगानि] शरीर [ये बालाः] तथा जो बाल, वृद्ध, तरुणादि अवस्थायें [विधिवशेन] कर्मों से [भवंति] होती हैं, [पुनः] और [जीवाः] जीव तो [सकला अपि] सभी [सर्वत्र] सब जगह [सर्वकाले अपि] और सब काल में [तावंतः] उतने प्रमाण ही है ।
Meaning : The difference of bodies--big or small, youthful or decrepit, --is owing to the effect of Karmas; but from the Nischaya point of view all souls ever and everywhere are the same.
श्रीब्रह्मदेव