+ शत्रु-मित्र, अपने-पराए में एकपना करना सम्यग्दर्शन -
सत्तु वि मित्तु वि अप्पु परु जीव असेसु विएइ ।
एक्कु करेविणु जो मुणइ सो अप्पा जाणेइ ॥104॥
शत्रुरपि मित्रमपि आत्मा परः जीवा अशेषा अपि एते ।
एकत्वं कृत्वा यो मनुते स आत्मानं जानाति ॥१०४॥
अन्वयार्थ : [एते अशेषा अपि] ये सभी [जीवाः] जीव हैं, उनमें से [शत्रुरपि] शत्रु में भी, [मित्रम् अपि] मित्र में भी, [आत्मा] अपने, और [परः] पराए में [यः] जो [एकत्वं कृत्वा] निश्चय से एकपना करता है, [सः आत्मानं] वह आत्मा को [जानाति] जानता है ।
Meaning : He in whose eyes Shatru (enemy), Mitra (friend), Appa (one's own self) Para (others), and all other souls are equal, is the knower of Atman (true self).

  श्रीब्रह्मदेव