+ ब्राह्मणादि वर्ण-भेद भी मत कर -
एक्कु करे मण बिण्णि करि मं करि वण्णविसेसु ।
इक्कइँ देवइँ जेँ वसह तिहुयणु एहु असेसु ॥107॥
एकं कुरु मा द्वौ कुरु मा कुरु वर्णविशेषम् ।
एकेन देवेन येन वसति त्रिभुवनं एतद् अशेषम् ॥१०७॥
अन्वयार्थ : [एकं कुरु] एक करके [मा द्वौ कार्षीः] राग और द्वेष मत कर, [वर्णविशेषम्] ब्राह्मणादि वर्ण-भेद को भी [मा कार्षीः] मत कर, [येन] क्योंकि [एकेन देवेन] एक देव में [एतद् अशेषम्] ये सब [त्रिभुवनं] तीनलोक [वसति] बसता है ।
Meaning : Regard all the Jivas as alike ; do not make any distinction between them; as is the Deva (God) or pure Atman, so are all other souls in the three worlds.

  श्रीब्रह्मदेव