+ आत्मज्ञ पर-द्रव्य के सम्बन्ध को छोड़ देते हैं -
परु जाणंतु वि परम-मुणि पर-संसग्गु चयंति ।
पर-संगइँ परमप्पयहँ लक्खहँ जेण चलंति ॥108॥
परं जानन्तोऽपि परममुनयः परसंसर्गं त्यजन्ति ।
परसंगेन परमात्मनः लक्ष्यस्य येन चलन्ति ॥१०८॥
अन्वयार्थ : [परममुनयः] परममुनि [परं जानंतोऽपि] उत्कृष्ट (आत्म-द्रव्य को) जानते हुए भी [परसंसर्गं] पर-द्रव्य (द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म) के सम्बन्ध को [त्यजंति] छोड़ देते हैं [येन] क्योंकि [परसंगेन] पर-द्रव्य के सम्बन्ध से [लक्ष्यस्य] ध्यान करने योग्य जो [परमात्मनः] परमपद उससे [चलंति] चलायमान हो जाते हैं ।
Meaning : The Param-Munis (the Highest Saints) knowing the Para-Vastu (not-self) as separate from their self, give up its Sansarga (association or company), because by the association of the not-self one experiences a fall from the Shuddha Atma Dhyana (pure contemplation of self).

  श्रीब्रह्मदेव