
काऊण णग्गरूवं बीभस्सं दड्ढ-मडय-सारिच्छं ।
अहिलससि किं ण लज्जसि भिक्खाए भोयणं मिट्ठं ॥111-अ॥
कृत्वा नग्नरूपं बीभत्सं दग्धमृतकसद्रशम् ।
अभिलषसि किं न लज्जसे भिक्षायां भोजनं मिष्टम् ॥१११-अ॥
अन्वयार्थ : [बीभत्सं] भयानक देह के मैल से युक्त [दग्धमृतकसदृशम्] जले हुए मुरदे के समान रूपरहित ऐसे [नग्नरूपं] वस्त्र रहित नग्नरूप को [कृत्वा] धारण करके [भिक्षायां] भिक्षा में [मिष्टम् भोजनं अभिलषसि] स्वादयुक्त आहार की इच्छा करता है, [किं न लज्जस] तुझे लाज क्यों नहीं आती ?
श्रीब्रह्मदेव