
जे सरसिं संतुट्ठ-मण विरसि कसाउ वहंति ।
ते मुणि भोयण-घार गणि णवि परमत्थु मुणंति ॥111-स॥
ये सरसेन संतुष्टमनसः विरसे कषायं वहन्ति ।
ते मुनयः भोजनगृध्राः गणय नैव परमार्थं मन्यन्ते ॥१११-स॥
अन्वयार्थ : [ये सरसेन] जो स्वादिष्ट आहार से [संतुष्टमनसः] हर्षित होते हैं, और [विरसे] नीरस आहार में [कषायं वहंति] क्रोधादि कषाय करते हैं, [ते मुनयः] उन मुनि को [भोजन गृध्राः] भोजन के विषय में गृद्ध-पक्षी के समान [गणय] जानना, वे [परमार्थं] परमतत्त्व को [नैव मन्यंते] नहीं समझते हैं ।
Meaning : Those Munis who love savoury food and are averse to unsavoury dishes, are gluttons ; they do not know the Parmartha .
श्रीब्रह्मदेव